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(सतत
स्मरीय श्रीस्वामी जी द्वारा संस्थापित ‘श्रीपीताम्बरा-पीठ‘ दतिया
(म॰प्र॰) शक्ति-उपासना का आदर्श संस्थान है । वहाँ प्रति-दिन प्रातः और
सायं पूर्ण विधि-विधान के साथ श्रीजगदम्बा का अर्चनादि सम्पन्न होता है ।
उस अवसर पर श्री-पीताम्बरा के आरार्तिक-क्रम में जो स्तुति भक्त-जनों
द्वारा स-स्वर पढ़ी जाती है, वही यहाँ उद्धृत है)
जय पीताम्बर-धारिणि जय सुखदे वरदे, मातर्जय सुखदे वरदे !
भक्त-जनानां क्लेशं, भक्त-जनानां क्लेशं सततं दूर करे ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। १
असुरैः पीडित-देवस्तव शरणं प्राप्ताः, मातस्तव शरणं प्राप्ताः ।
धृत्वा कौर्म-शरीरं, धृत्वा कौर्म-शरीरं दूरी-कृत-दुःखम् ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। २
मुनि-जन-वन्दित-चरणे, जय विमले बगले, मातर्जय विमले बगले !
संसारार्णव-भीतिं, संसारार्णव-भीतिं नित्यं शान्ति-करे ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ३
नारद-सनक-मुनीन्द्रैर्ध्यातं पद-कमलं, मातर्ध्यातं पद-कमलं ।
हरि-हर-द्रुहिण-सुरेन्द्रैः, हरि-हर-द्रुहिण-सुरेन्द्रै सेवित-पद-युगलम् ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ४
काञ्चन-पीठ-निविष्टे मुद्गर-पाश-युते, मातमुद्गर-पाश-युते !
जिह्वा-वज्र-सुशोभित, जिह्वा-वज्र-सुशोभित पीतांशुक-लसिते ! ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ५
विन्दु-त्रिकोण-षडस्रैरष्ट-दलोपरि ते, मातरष्ट-दलोपरि ते ।
षोडश-दल-गत-पीठं, षोडश-दल-गत-पीठं भूपुर-वृत्त-युतम् ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ६
इत्थं साधक-वृन्दश्चिन्तयते रुपं, मातश्चिन्तयते रुपम् ।
शत्रु-विनाशक-बीजं, शत्रु-विनाशक-बीजं धृत्वा हृत्-कमले ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ७
अणिमादिक-बहु-सिद्धिं लभते सौख्य-युतां, मातर्लभते सौख्य-युतां ।
भोगान् भुक्त्वा सर्वान्, भोगान् भुक्त्वा सर्वान् गच्छति विष्णु-पदम् ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ८
पूजा-काले कोऽपि आर्तिक्यं पठते, मातरार्तिक्यं पठते ।
धन-धान्यादि-समृद्धो, धन-धान्यादि-समृद्धः सान्निध्यं लभते ।।
जय देवि, जय देवि ! ।। ९
आरती (2)
पीताम्बरि रवि कोटि, ज्योति परा-माया,
माँ ज्योति परा माया ।
बक-मुख ज्योति महा-मुख, बहु कर पर छाया ।।
वर कर अष्टादश भुज, शत भुज शत काया ।
माँ शत भुज शत काया ।
द्वि-भुज चतुर्भुज बहु-भुज, भुज-मय जग माया ।।
जय देवि, जय देवि ! मणि-मण्डप वेदी,
माँ, मणिपुर मणि-वेदी ।
चिनतामणि सिंहासन, चिन्तामणि सिंहासन,
सुर तरु-वर वेदी । जय देवि, जय देवि ! ।। १
तीम नयन रवि-शशि-वसु, इन्दीवर-दल से,
मां इन्दीवर-दल से ।
खचिता कर्ण हरण छवि, खंजन-मृग छल से ।
अत्याकृति छवि पर छवि, भय-हर भय कर से,
माँ, भय-हर भय पर से ।
मोहन मुक्ति-विधायन, कोर कृपा परसे ।
जय देवि, जय देवि ! ।। २
मुकुट महा-मणि शशि-पर, कच विलिखित मोती,
माँ, कच विलिखित मोती ।
नखत जटित बैंदी सिर, भाल-भरित जोती ।
नक-बेसर तर लटकत, गज-मुक्ता मोती ,
माँ, गज-मुक्ता मोती ।
जन भव-भय वारत नित, पुण्य सदन स्रोती ।
जय वेदि, जय देवि ! ।। ३
चिबुक अधर बिम्बाधर, दाड़िम दन्त-कली,
माँ, दाड़िम दन्त-कली ।
रस-मय गन्ध सुमन पर, श्वासन्ह प्रति निकली ।
करण अतीव मनोहर, ताटंकित घुँघुरी,
माँ, ताटंकित घुँघुरी ।
रत्नादिक सुर सम हिल, सुर पर मधु सुर री ।
जय देवि, जय देवि ! ।। ४
मदन महा-छवि रति-छवि, छवि पर छवि शोभा,
माँ छवि पर मुख-शोभा ।
मदन-दहन मन-मोहनि, रुप-अवधि ओभा ।
मणिपुर अमरित सर वर, कम्बु-छटा ग्रीवा,
माँ, कम्बु-छटा ग्रीवा ।
रुप-सुधा सर रस कर, सार सुमुख ग्रीवा ।
जय देवि, जय देवि ! ।। ५
सुर-तरु कुसुम सफल तर, बगल भुजग दोनों,
माँ बगल भुजग दोनों ।
लटकत फण नीचे कर, भुज कर मणि दोनों ।
फणि-मणि भुज कर कंकण, रत्न-जटित ज्योती,
माँ रत्न-जटित ज्योति ।
भुवन-भुवन निज जन मन, पथ-दर्शन स्रोती ।
जय देवि, जय देवि ! ।।६
मध्य महा-द्युति द्योतित, कैलाशो मेरुः,
माँ, कैलाशो मेरुः ।
तेज महा-तप सुर-मुनि, रक्त-शिखर गेरु ।
सत-लर गज-मुक्ता कर द्वय गिरि बिच गंगा,
माँ, द्वय गिरि बिच गंगा ।
तारन भक्त-उधारन, पय सुख मुख संगा ।
जय देवि, जय देवि ! ।।७
नाभि गँभीर विशोधन, यन्त्र-कला कलसी,
माँ, यन्त्र कला कलसी ।
कज्जल गिरि कल्मष मन, जन फट कट मलसी,
सोमल रोमावलि-मिस, छटक बिखर दीखे,
माँ, छटक-बिखर दीखे ।
मणिपुर तेज बनत मणि, पारस गुण सीखे ।
जय देवि, जय देवि ! ।। ८
बिन्दु त्रिकोण निवासिनि, शक्ति जगज्जननी,
माँ शक्ति जगज्जननी ।
जंघोरु-धर पोषिणि, पद निज जन तरिणी ।।
माया-बीज-विलासिनि, प्रणवार्चित रमिणी,
माँ, प्रणवार्चित रमिणी ।
अनघ अमोघ महा-शिव, सह शिर मोति मणी ।
जय देवि, जय देवि ! ।। ९
त्र्यस्र षडस्र सु-वृतं, चाष्ट-दलं पद्मं ।
पीयूषोदधि बिच रुच, शुच पद्मं रक्तं,
माँ, शुच पद्मं रक्तं ।
सिंहासन प्रेतासन, मणि पर मणि मुक्तं ।
जय देवि, जय देवि ! ।। १०
कामिक कर्म स्वजन-पन-पालिनि पर-विद्या,
माँ, पालिनि पर-विद्या ।
सिद्धा सिद्धि सनातनि, सिद्धि-प्रदा विद्या ।
सिद्धि-सदनि, सिद्धेश्वरि सरमा,
माँ, सिद्धेश्वरि सरमा ।
मुक्त विलासिनि
‘मोती’, मुक्ति-प्रदा परमा ।
जय देवि, जय देवि ! ।
मणि मण्डप वेदी, माँ मणिपुर मणि-वेदी ।
चिन्तामणि सिंहासन, चिन्तामणि सिंहासन,
सुर-तरु वर वेदी ।जय देवि, जय देवि ! ।। ११